Monday, August 25, 2014

शहर तेरा मुसाफिर छोड़ चला ||

शहर तेरा मुसाफिर छोड़ चला, तेरे हिजर में बेबस होकर
अब यादों के गलियारों में मुलाकातें होंगी॥

हर सपना वो टूट गया, जो तेरी पलकों के साये में संजोया था।
मुझसे रूठा आज खुदा, रोया होगा कहीं छुपकर॥

दिल-ए-नादान हम उसे भुलाएँगे, जो जुदा हुआ भी तो धड़कन बनकर ।
इस अनजाने मंज़र पे तनहा छोड़ गया, साथ निभाने का वादा कर ॥

साथी, तूने जीना सीखाया मेरे नीरस होंठो को जाम हंसी का पिलाया।
जरा सोच लेता कैसे जियेगा चकोर, अँधेरी रात देखकर॥

तेरा ऊँचा मकाम रहेगा, मेरी कब्र पे साक़ी तेरा नाम रहेगा ।
निष्ठुर आँधियों में भी तेरी यादों को संजोया करुँगा दीया जलाकर ॥



-सौरव


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