बेरंग इन हवाओं का रंग देख, जो रास आये वो ढंग देख ।
मेरी आँखों में खुद को मेरे संग देख, फिर मेरे चहेरे की उमंग देख ॥
रिश्ता जो रूह से जुड़ जाता है, तेरे-मेरे मिटने से कहां मिट पाता है ।
'मैं' को त्याग 'सौरव,' समय का प्रभुत्व देख ॥
इक नज़र मेरे एहसासों को देख, मेरे गीतों के रागों को देख ।
खुद को मुझसे तोड़ कर देख, खुद को मुझसे जोड़ कर देख ॥
मनुष्य का पथरीले रस्तों पे ही चरित्र परिभाषित होता है।
सुकर जीवनकाल कहाँ स्व-अद्यतन कर पाता है ॥
तू खुली आँखों से स्वप्न वो आशिमा देख ।
जो ईश्वर को रास आये; वो अफ़साना, वो सफर देख ॥
मेरी आँखों में खुद को मेरे संग देख, फिर मेरे चहेरे की उमंग देख ॥
रिश्ता जो रूह से जुड़ जाता है, तेरे-मेरे मिटने से कहां मिट पाता है ।
'मैं' को त्याग 'सौरव,' समय का प्रभुत्व देख ॥
इक नज़र मेरे एहसासों को देख, मेरे गीतों के रागों को देख ।
खुद को मुझसे तोड़ कर देख, खुद को मुझसे जोड़ कर देख ॥
मनुष्य का पथरीले रस्तों पे ही चरित्र परिभाषित होता है।
सुकर जीवनकाल कहाँ स्व-अद्यतन कर पाता है ॥
तू खुली आँखों से स्वप्न वो आशिमा देख ।
जो ईश्वर को रास आये; वो अफ़साना, वो सफर देख ॥
बेरंग इन हवाओं का रंग देख, जो रास आये वो ढंग देख ।
-सौरव
-सौरव
No comments:
Post a Comment