Saturday, August 16, 2014

बेरंग इन हवाओं का रंग देख....

बेरंग इन हवाओं का रंग देख, जो रास आये वो ढंग देख ।
मेरी आँखों में खुद को मेरे संग देख, फिर मेरे चहेरे की उमंग देख ॥

रिश्ता जो रूह से जुड़ जाता है, तेरे-मेरे मिटने से कहां मिट पाता है ।
'मैं' को त्याग 'सौरव,' समय का प्रभुत्व देख  ॥


इक नज़र मेरे एहसासों को देख, मेरे गीतों के रागों को देख ।
खुद को मुझसे तोड़ कर देख, खुद को मुझसे जोड़ कर देख ॥

मनुष्य का पथरीले रस्तों पे ही चरित्र परिभाषित होता है। 
सुकर जीवनकाल कहाँ स्व-अद्यतन कर पाता है ॥

तू खुली आँखों से स्वप्न वो आशिमा देख ।
जो ईश्वर को रास आये; वो अफ़साना, वो सफर देख ॥

बेरंग इन हवाओं का रंग देख, जो रास आये वो ढंग देख ।


-सौरव 



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