Thursday, August 21, 2014

मौसम बदले, दिन बदले -- फिर तूं बदला ।

ज़िंदगी तेरे सितम ने रुला दिया, यह किस मोड़ पे आकर मैंने खुद को गवां दिया ।
दिखाए जो तेरी आँखों ने सपने मुझे, फिर अधूरी रात में ही जगा दिया ॥

मौसम बदले, दिन बदले -- फिर तूं बदला ।
मेरी वफ़ा का जैसे समां बदला ॥

'सौरव' इक शाम उसने कहा कि नाकाफ़ी है प्यार तेरा,
मेरी मुस्कराहट ने कम्बक़्त होंठों को जला दिया ॥

अब कहां साथी वो डगर है, सूनी है ज़िंदगी, अंजाना सफर है ।
मैं चलूं तेरी आस लिए, तेरी बेरुखी को अफ़साना बना लिया ॥

मोहब्बत रास न आई, बात यह नहीं के दिल में खोट था ।
बस वो गहराई मापता रहा झीलों की और समंदर की प्रतिष्ठा भुला दिया ॥

समझ ना आए कि दुआ में क्या मांगू?
वक़्त से वो नज़ाकत मांग लूँ या तुझे भुला दूँ ॥



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