वह असिरे – दामे बला हूँ मैं , जिसे सांस तक भी न आ सके।
वह कतीले – खंजरे जुल्म हूँ, जो न आँख आफ्नै फिरा सके॥
मिरा हिन्दुकुश हुआ हिन्दुकश , ये हिमालिया है दिवालिया।
मेरी गंगा-जनुमा उतर गयी हैं, बस इतनी हैं की नहा सके॥
मेरे बच्चे भीख मांगते हैं, उन्हें कड़ा रोटी का कौन दे।
जहां जावे कहें परे – परे, कोई पास तक न बिठा सके॥
मेरे कोहेनूर को क्या हुआ, उसे टुकड़े – टुकड़े ही कर दिया॥
उसे खाक में ही मिला दिया, ऐसा कोई कि ला सके?
-अशफ़ाक़ उल्ला खां
( असिरे – दामे बला – मुसीबतों में फसा हुआ , कतीले – खंजरे जुल्म – अत्याचार के खड़ग(तलवार) से घायल )
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