Sunday, August 24, 2014

मेरी गंगा-जनुमा उतर गयी हैं, बस इतनी हैं की नहा सके॥

वह असिरे – दामे बला हूँ मैं , जिसे सांस तक भी न आ सके। 

वह कतीले – खंजरे जुल्म हूँ, जो न आँख आफ्नै फिरा सके॥ 


मिरा हिन्दुकुश हुआ हिन्दुकश , ये हिमालिया है दिवालिया। 

मेरी गंगा-जनुमा उतर गयी हैंबस इतनी हैं की नहा सके॥ 


मेरे बच्चे भीख मांगते हैं, उन्हें कड़ा रोटी का कौन दे। 

जहां जावे कहें परे – परे, कोई पास तक न बिठा सके॥ 


मेरे कोहेनूर को क्या हुआ, उसे टुकड़े – टुकड़े ही कर दिया॥ 

उसे खाक में ही मिला दिया, ऐसा कोई कि ला सके?



                         

                                                                                                                    -अशफ़ाक़ उल्ला खां 




( असिरे – दामे बला – मुसीबतों में फसा हुआ , कतीले – खंजरे जुल्म – अत्याचार के खड़ग(तलवार) से घायल )

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