आज फिर इन आँखों ने इक पिता को पुत्र के जनाज़े पर रोते देखा ।
दुर्बल हाथों से कैसे वो उसे मुखाग्नि देगा, जो हाथ हर लम्हा प्रतिछाया थे ॥
ईश्वर तुझसे आज शिकायत तो है, आज तेरा नाम भी उस माँ का सहारा नहीं ।
क्या बीती होगी उस बहन पे, जिसके सहोदर ने आज उसे पुकारा नहीं ॥
वक़्त ने जो घाव दिए-- व्यथापूर्ण, बेहद नासूर दिए
इक छन को मरहम बन पाऊँ, काश उसकी आई मर जाऊँ
साथी उठकर फिर से चलना होगा, दर्दभरी इन आंधियों में फिर से सम्बलना होगा ।
तेरे-मेरे जीवन का पैमाना कुछ भी नहीं, परंतु इस दौर में भी निष्ठा से गुज़ारना होगा ॥
आज मैंने इक भाई खोया है, हृद्य ख़ामोशी के आंसू रोया है ।
बिसर कहाँ पायेगी मुस्कान तेरी, जहन की गहराईयों में रहेगी याद तेरी ॥
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