Thursday, August 21, 2014

तेरे-मेरे जीवन का पैमाना कुछ भी नहीं....

आज फिर इन आँखों ने इक पिता को पुत्र के जनाज़े पर रोते देखा । 
दुर्बल हाथों से कैसे वो उसे मुखाग्नि देगा, जो हाथ हर लम्हा प्रतिछाया थे ॥ 

ईश्वर तुझसे आज शिकायत तो है, आज तेरा नाम भी उस माँ का सहारा नहीं । 
क्या बीती होगी उस बहन पे, जिसके सहोदर ने आज उसे पुकारा नहीं ॥ 

वक़्त ने जो घाव दिए-- व्यथापूर्ण, बेहद नासूर दिए 
इक छन को मरहम बन पाऊँ, काश उसकी आई मर जाऊँ

साथी उठकर फिर से चलना होगा, दर्दभरी इन आंधियों में फिर से सम्बलना होगा । 
तेरे-मेरे जीवन का पैमाना कुछ भी नहीं, परंतु इस दौर में भी निष्ठा से गुज़ारना होगा ॥ 

आज मैंने इक भाई खोया है, हृद्य ख़ामोशी के आंसू रोया है । 
बिसर कहाँ पायेगी मुस्कान तेरी, जहन की गहराईयों में रहेगी याद तेरी ॥

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