Monday, August 25, 2014

शहर तेरा मुसाफिर छोड़ चला ||

शहर तेरा मुसाफिर छोड़ चला, तेरे हिजर में बेबस होकर
अब यादों के गलियारों में मुलाकातें होंगी॥

हर सपना वो टूट गया, जो तेरी पलकों के साये में संजोया था।
मुझसे रूठा आज खुदा, रोया होगा कहीं छुपकर॥

दिल-ए-नादान हम उसे भुलाएँगे, जो जुदा हुआ भी तो धड़कन बनकर ।
इस अनजाने मंज़र पे तनहा छोड़ गया, साथ निभाने का वादा कर ॥

साथी, तूने जीना सीखाया मेरे नीरस होंठो को जाम हंसी का पिलाया।
जरा सोच लेता कैसे जियेगा चकोर, अँधेरी रात देखकर॥

तेरा ऊँचा मकाम रहेगा, मेरी कब्र पे साक़ी तेरा नाम रहेगा ।
निष्ठुर आँधियों में भी तेरी यादों को संजोया करुँगा दीया जलाकर ॥



-सौरव


Sunday, August 24, 2014

कष्टों ने जीवन का महत्व सीखा दिया ||

अँधेरी रात यह बीत जाएगी, फिर इक नयी सुबह आयेगी ।
ओस की बूंदों से तृप्त कलियाँ खिलखिलायेंगी, डाल पर बैठी मैना गीत कोई सुहाना गुनगुनायेगी ॥

कठिन समय बीत चला, मंथर गति से टल रही है यह बला ।
दिन वो हसीन आयेगा, 'सौरव' फिर से चल पायेगा ॥

अभिलाषा है देस जाऊँ, माँ की पावन चरणों में शीश झुकाऊँ।
प्रकृति की मनमोहक सुंदरता को निहारु, झीलों-झरनों की धारा संग बह जाऊँ॥

ईश्वर तेरी विभूति का मुझे एहसास है, बिनती तुझसे है हर पल यही--
मेरे माता-पिता के मुख पे उदासी ना हो, मुल्य उनकी अनुकंपा का ना चुका पाऊँ प्राण देकर भी॥

कष्टों ने जीवन का महत्व सीखा दिया, समय की प्रतिष्ठा का आभास करा दिया।
मृत्यु अटल है इक दिन आनी है, काश जी लूँ फिर से वो क्षण-- जो नफरतों में बीता दिया॥



-सौरव

The Song Of The Free

The wounded snake its hood unfurls,
The flame stirred up doth the blaze,
The desert air resounds the calls
Of heart-struck lion’s rage.
The cloud puts forth it deluge strength
When lightning cleaves its breast,
When the soul is stirred to its inmost depth
Great ones unfold their best.
Let eyes grow dim and heart grow faint,
And friendship fails and love betray,
Let Fate its hundred horrors send,
And clotted darkness block the way.
All nature wears one angry frown,
To crush you out – still know, my soul,
You are Divine. March on and on,
Nor right nor left but to the goal.
Nor angel I, nor man, nor brute,
Nor body, mind, nor he nor she,
The books do stop in wonder mute
To tell my nature; I am He.
Before the sun, the moon, the earth,
Before the stars or comets free,
Before e’en time has had its birth,
I was, I am, and I will be.
The beauteous earth, the glorious sun,
The calm sweet moon, the spangled sky,
Causation’s law does make them run;
They live in bonds, in bonds they die.
And mind its mantle dreamy net
Cast o'er them all and holds them fast.
In warp and woof of thought are set,
Earth, hells, and heavens, or worst or best.
Know these are but the outer crust -
All space and time, all effect, cause.
I am beyond all sense, all thoughts,
The witness of the universe.
Not two nor many, ’tis but one,
And thus in me all me’s I have;
I cannot hate, I cannot shun
Myself from me, I can but love.
From dreams awake, from bonds be free,
Be not afraid. This mystery,
My shadow cannot frighten me,
Know once for all that I am He.


-Swami Vivekananda

अशफाक की आखिरी रात - अग्निवेश शुक्ल

"जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?

बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा"

जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा."






अशफाक की डायरी से :-




"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये,ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना;
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,जबाँ तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना."

मेरी गंगा-जनुमा उतर गयी हैं, बस इतनी हैं की नहा सके॥

वह असिरे – दामे बला हूँ मैं , जिसे सांस तक भी न आ सके। 

वह कतीले – खंजरे जुल्म हूँ, जो न आँख आफ्नै फिरा सके॥ 


मिरा हिन्दुकुश हुआ हिन्दुकश , ये हिमालिया है दिवालिया। 

मेरी गंगा-जनुमा उतर गयी हैंबस इतनी हैं की नहा सके॥ 


मेरे बच्चे भीख मांगते हैं, उन्हें कड़ा रोटी का कौन दे। 

जहां जावे कहें परे – परे, कोई पास तक न बिठा सके॥ 


मेरे कोहेनूर को क्या हुआ, उसे टुकड़े – टुकड़े ही कर दिया॥ 

उसे खाक में ही मिला दिया, ऐसा कोई कि ला सके?



                         

                                                                                                                    -अशफ़ाक़ उल्ला खां 




( असिरे – दामे बला – मुसीबतों में फसा हुआ , कतीले – खंजरे जुल्म – अत्याचार के खड़ग(तलवार) से घायल )

Saturday, August 23, 2014

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा ||

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा
गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा
ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा
मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा
यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहाँ से ।
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा
'इक़बाल' कोई मरहूम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा ।

                                                                                                            - मुहम्मद इक़बाल

Thursday, August 21, 2014

तेरे-मेरे जीवन का पैमाना कुछ भी नहीं....

आज फिर इन आँखों ने इक पिता को पुत्र के जनाज़े पर रोते देखा । 
दुर्बल हाथों से कैसे वो उसे मुखाग्नि देगा, जो हाथ हर लम्हा प्रतिछाया थे ॥ 

ईश्वर तुझसे आज शिकायत तो है, आज तेरा नाम भी उस माँ का सहारा नहीं । 
क्या बीती होगी उस बहन पे, जिसके सहोदर ने आज उसे पुकारा नहीं ॥ 

वक़्त ने जो घाव दिए-- व्यथापूर्ण, बेहद नासूर दिए 
इक छन को मरहम बन पाऊँ, काश उसकी आई मर जाऊँ

साथी उठकर फिर से चलना होगा, दर्दभरी इन आंधियों में फिर से सम्बलना होगा । 
तेरे-मेरे जीवन का पैमाना कुछ भी नहीं, परंतु इस दौर में भी निष्ठा से गुज़ारना होगा ॥ 

आज मैंने इक भाई खोया है, हृद्य ख़ामोशी के आंसू रोया है । 
बिसर कहाँ पायेगी मुस्कान तेरी, जहन की गहराईयों में रहेगी याद तेरी ॥

मौसम बदले, दिन बदले -- फिर तूं बदला ।

ज़िंदगी तेरे सितम ने रुला दिया, यह किस मोड़ पे आकर मैंने खुद को गवां दिया ।
दिखाए जो तेरी आँखों ने सपने मुझे, फिर अधूरी रात में ही जगा दिया ॥

मौसम बदले, दिन बदले -- फिर तूं बदला ।
मेरी वफ़ा का जैसे समां बदला ॥

'सौरव' इक शाम उसने कहा कि नाकाफ़ी है प्यार तेरा,
मेरी मुस्कराहट ने कम्बक़्त होंठों को जला दिया ॥

अब कहां साथी वो डगर है, सूनी है ज़िंदगी, अंजाना सफर है ।
मैं चलूं तेरी आस लिए, तेरी बेरुखी को अफ़साना बना लिया ॥

मोहब्बत रास न आई, बात यह नहीं के दिल में खोट था ।
बस वो गहराई मापता रहा झीलों की और समंदर की प्रतिष्ठा भुला दिया ॥

समझ ना आए कि दुआ में क्या मांगू?
वक़्त से वो नज़ाकत मांग लूँ या तुझे भुला दूँ ॥



Saturday, August 16, 2014

बेरंग इन हवाओं का रंग देख....

बेरंग इन हवाओं का रंग देख, जो रास आये वो ढंग देख ।
मेरी आँखों में खुद को मेरे संग देख, फिर मेरे चहेरे की उमंग देख ॥

रिश्ता जो रूह से जुड़ जाता है, तेरे-मेरे मिटने से कहां मिट पाता है ।
'मैं' को त्याग 'सौरव,' समय का प्रभुत्व देख  ॥


इक नज़र मेरे एहसासों को देख, मेरे गीतों के रागों को देख ।
खुद को मुझसे तोड़ कर देख, खुद को मुझसे जोड़ कर देख ॥

मनुष्य का पथरीले रस्तों पे ही चरित्र परिभाषित होता है। 
सुकर जीवनकाल कहाँ स्व-अद्यतन कर पाता है ॥

तू खुली आँखों से स्वप्न वो आशिमा देख ।
जो ईश्वर को रास आये; वो अफ़साना, वो सफर देख ॥

बेरंग इन हवाओं का रंग देख, जो रास आये वो ढंग देख ।


-सौरव 



Tuesday, August 12, 2014

Sex & Marketing

Yesterday I heard about 'lascivious' presentation of Kamdhenu Paint, ''BOLLYWOOD STAR NIGHT'' at club Cabbana, Phagwara. Dealers were invited to 'Paint the town' with thrilling performances (includes pole dance as well) of Minisha Lamba, Claudia Ciesla, Shefali Zariwala, Hussain Kuwajerwala, Drishti Saharan & many more. Though there is not much-authentic info about it but the pictorial depiction of scheme pamphlet says it all.



Infusing sex in marketing strategies is old and widespread. In 1870s, Pearl tobacco had featured a naked maiden on its package cover. sIn 1885 W. Duke & Sons inserted sexually provocative trading cards of actresses in their packages of Duke's Cigarettes. Calling them the initiators of sex-marketing is not wrong.




Human brain is attentive to food, danger and .... Sex. It remains scanning the thing that can be dangerous, the food and the things it can have sex with. Brain rapidly response to sexual messages and it is very hard to ignore them. That is why, marketers keep on targeting it.

Now a day, society is lore open to sex and results into more presence of sex into marketing and advertising. 'The Rumour Touch' keep things away that can be offended. 'Selling Sex' is the trade-mark of industries like fashion, motion picture, clothing, automobile and many more.

The question to wrangle upon is, whether 'Selling Sex' should be ethical?

Yes, will be the answer. Associating a product with sex is tricky. If any effort went wrong or the message perceived by the customer got wrong, it would cost the brand identity. 

Practice adopted by Kamdhenu Paints is ethically wrong. It would drive the short term sale. Any whistleblowing or mishappening would draw them in a tiff. 

Rather....

Be Creative, Be Sexy!


Here is some creative sex-blended stuff for you:











Wednesday, August 6, 2014

Amazon Vs Flipkart- A Customer's Outlook


It is the story of a teacher and pupil. The relationship was of 'getting inspired,' before it turned into a ‘bitter war.’ The war is all about market share.

Yes, you are right! It is Amazon Vs Flipkart. 



Bansal brothers were inspired by Amazon to set up the replica in Indian market and they did it very well. Late entry of Amazon in India and their outrageous efforts to grip the market has fluttered Flipkart. There is no way out for both, except to fight a price battle.

Guess what, who is the gainer? And the answer is simple. It’s Indian Consumer, who always paid an extra penny for a better service.

I am a frequent online shopper. From books to electronic gadget, I prefer e-commerce. Especially, these days I am even more active due to my broken leg. Sigh! Broken limbs or such other disability is quite a blessing for these consignors. Nevertheless, many THANKS to both!

Though both giants are up to the mark, but my personal experience with Amazon is phenomenal. Foremost, they are speedier in delivery and quicker in action. The depth of product mix at Amazon is sea alike. Though Flipkart is little trendy in marketing style and making good use of word 'Exclusive.' Being a huge brand identity, Amazon carries itself with all that 'orange' branding. Its simple but mind-blowing marketing strategies can make anyone feel astounding. Amazon's online ads remind me of the famous tagline of Hutch (Wherever You Go, Our Network Follows). These ads going to follow you on every damn website you open, with the product line you went through at amazon.in. For a common man, It can be a great fun. Being a marketer I know this is just another way to persuade a customer.

To my surprise, Amazon has offered me a gift card worth of Rs. 200. It was a token of apology against a late delivery that took place long back. Being consumer focused, Amazon credited me the delivery charges and apologized. Right from dispatching to delivery, its valuable SMS follow-up is yet another add-on 

As the price war continuous, both companies are selling things at very low rates. Huge discounts and offers are given to encroach the market share. Both firms have abolished the competition. Not a single firm stood against these and each one is about to diminish. Though snapdeal has shown little resistance, and myntra was acquired by Flipkart.

Sometimes it makes me surprise to see such low rates. At a few occasions unlike Flipkart, I have observed comparatively low quality of products of Amazon. It can be taken into consideration to reduce the prices even more.

Net worth of Sachin and Binny is soaring high because of good execution, of a copied idea. Nevertheless, war is on. Winning it requires stamina and willingness to earn low profits.


Win-Win for Customers!

Tuesday, August 5, 2014

To The Most Wonderful Doctor I Know

Till 13 March, I never had an affair to doctors except a hope to marry one. Being outstanding at gym, never made me feel as low as I felt after being crushed by a freak drunk idiot. After all, a good body is all what you possess.

It took him around 6-7 hours to operate me scrupulously and reshape all those anomalous fractures. Superlatively genius, the man is an example to the doctor community. His noble and humble nature makes him stand aside. The much special thing about him that he never made me feel like 'Patient,' a word I hated the most. Come on you, jerks! My name is Sourav, and I am not a 'Patient.' Call me a fighter, rather.



Mr. Sanjeev Uppal is M.S., M.Ch., S.T.S (Yale University, USA). Honestly, the meaning of these initials for me is like chewing almond now a day (as my teeth are sensitive due to the smash). He is heading the department of plastic surgery in DMCH, Ludhiana. Being so successful and rich, he is away from all that so called 'arrogance.' It is an astonishing experience to know him.


During these five months of downer, I have realised that half of the malaise can be taken away with love and affection. There is nothing worst for a patient than to be treated harshly. I got hurt brutally, without even committing any mistake. So, a grating treatment is not what I deserved. I had beaten death and I wished to be treated like a champion. 

A lady doctor and some junior practitioners had no idea, "How to deal with?". They kept on experimenting, yet my misery had no end. Boundless pain made me bawl every time they tried something new. It was so hopelessness that it made me even pray for death. 

and the hope emerged vividly, my father still call it miraculous.

I believe that God has made humans beings so that they can serve others. Perhaps that is why humanity is blessed with intelligence and capability of thinking. To think that I am better than others or I am superior to anybody is disastrous. The Holy Bhagwad Gita calls it 'ignorance'. 


A woman tells her doctor, 'I've got a bad back.' The doctor says, 'It's old age.' The woman says, 'I want a second opinion.' The doctor says: 'Okay - you're ugly as well.'
-Tommy Cooper

Unlike This, Dr. Uppal treated me with tenderness and never fooled me to avoid any risk. He was always firm in his conversations, he never had a second opinion to talk about. His skilful ability to avoid pain has made me obliged to him. After that, I would never be harsh to myself. 

Right from telling me about various television serials to discussing a marketing plan; he motivated me to never give up. It is my affection and propensity towards him that sometimes I keep on talking to him even after the prescription. After all, how much a patient expect?  Just a careful and affectionate watch.



Such people are blessings to humanity. Still under his supervision, hopeful.